नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक आदेश में कहा कि अगर अलॉटमेंट के बाद जमीन का मालिक उस पर अतिक्रमण रोकने में असफल रहता है तो इसके लिए प्राधिकरण जिम्मेदार नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कंज्यूमर फोरम के आदेश को चुनौती देने वाली हरियाणा अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (हुडा) की याचिका बरकरार रखते हुए यह फैसला सुनाया।
दरअसल वीरेश सांगवान ने एक व्यक्ति से जमीन खरीदी थी। इसके बाद सांगवान ने सेवा में कमी की शिकायत करते हुए इस आधार पर डिस्ट्रिक्ट कंज्यूमर फोरम का रुख किया कि उसे जो जमीन दी गई है, उस पर अतिक्रमण हो रखा है। फोरम ने हुडा को कहा कि वह सांगवान को वैकल्पिक जमीन मुहैया कराए। स्टेट फोरम और राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण आयोग ने भी डिस्ट्रिक्ट फोरम के आदेश को कायम रखा। इसके बाद हुडा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जी. एस. सिंघवी और एस. डी. मुखोपाध्याय की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि हमारे विचार से डिस्ट्रिक्ट फोरम का इसे सेवा में कमी का मामला मानना ठीक नहीं है। स्टेट फोरम और राष्ट्रीय आयोग का डिस्ट्रिक्ट फोरम के फैसले को सही करार देना गंभीर गलती है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार सांगवान ने साइट का दौरा करने के बाद ही सेल डीड पर सहमति जताई है। अगर वहां कोई अतिक्रमण था तो उन्हें तभी विक्रेता से विरोध दर्ज कराना चाहिए था।
पीठ ने कहा कि सांगवान ने इस मामले में कोई आपत्ति नहीं उठाई और सरकार के जूनियर इंजीनियर की जोड़तोड़ से तैयार की गई रिपोर्ट की आड़ लेते हुए डिस्ट्रिक्ट फोरम में शिकायत दर्ज करा दी। इसलिए हमारे विचार से इस मामले में किसी भी तरह के अतिक्रमण के लिए याचिकाकर्ता जिम्मेदार नहीं है।
पीठ ने कहा कि जमीन के वास्तविक अलॉटी चंपत जैन को जब 27 फरवरी 1998 को जमीन आवंटित की गई थी, तब उस पर किसी तरह का अतिक्रमण नहीं था। आसानी से समझा जा सकता है कि चंपत जैन ने कब्जा करने वालों को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए। साथ ही हुडा एकट 1997 में ऐसा कोई नियमन या प्रावधान नहीं है, जिसके तहत सांगवान को वैकल्पिक जमीन मुहैया कराई जाए।-Amar Ujala, Story Update : Thursday, November 17, 2011 1:40 AM
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