नई दिल्ली. अगर कोई इंश्योरेंस कंपनी पॉलिसी धारक से यह तथ्य छिपाती है कि नशे की हालत में दुर्घटना होने पर वह मुआवजे का हकदार नहीं होगा, तो उस कंपनी को उपभोक्ता अदालत द्वारा तय मुआवजा देना होगा।
स्रुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जीएस सिंघवी और जस्टिस सुधांशु ज्योति मुखोपाध्याय की बेंच ने रॉयल सुंदरम एलायंस इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की अपील खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी। बेंच ने कहा कि इस तरह के दावों से बचने के लिए कंपनी को बीमा के दायरे में नहीं आने वाले प्रावधानों की जानकारी पॉलिसी धारक को दस्तावेजों में उपलब्ध करानी चाहिए। अगर वह ऐसा नहीं करती है तो उसे पीड़ित या उसके परिजनों को मुआवजा देना ही होगा।
रॉयल सुंदरम ने महाराष्ट्र राज्य उपभोक्ता निवारण फोरम और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटारा आयोग के आदेश को चुनौती दी थी। इन्होंने कंपनी को मुंबई की संगीता दीपक तोलानी को आठ लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया था। 22 अप्रैल 2002 को संगीता के पति की काइनेटिक होंडा को एक डंपर ट्रॉली ने टक्कर मार दी थी जिसमें उनकी मौत हो गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि यह दुर्घटना डंपर के ड्राइवर की लापरवाही की वजह से हुई क्योंकि वह वाहन काफी तेज चला रहा था।
संगीता तोलानी ने दावा किया कि उनके पति के पास सिटीबैंक व स्टैंडर्ड चार्टर्ड के दो क्रेडिट कार्ड थे और दुर्घटना का बीमा भी था इसलिए रॉयल सुंदरम की तरफ से राहत के हकदार हैं। उनके दावे का विरोध करते हुए बीमा कंपनी ने कहा कि उनके पति शराब के नशे में थे इसलिए वह मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिए अपने फैसले में ट्रिब्यूनल्स की इस बात को माना कि दुर्घटना लापरवाही व तेजी से डंपर चलाने की वजह से हुई थी,न कि इसलिए कि मृतक शराब पीए हुए था। कोर्ट ने यह भी कहा कि कंपनी पॉलिसी दस्तावेज में दर्ज बीमा के दायरे में नहीं आने वाले प्रावधानों को आधार नहीं बना सकती, क्योंकि हादसे का शिकार हुए व्यक्ति को इनके बारे में नहीं बताया गया था। अगर बीमा के दायरे में नहीं आने वाले प्रावधानों की जानकारी पॉलिसी धारक को नहीं दी गई है तो यह उस पर लागू नहीं होंगे। स्त्रोत : दैनिक भास्कर, Source: डीएनए नेटवर्क | Last Updated 11:45(14/11/11) (तथ्य छिपाया तो इंश्योरेंस कंपनी को शराबी ड्राइवर को भी देना होगा मुआवजा)
No comments:
Post a Comment