आमतौर पर मैरिज हॉल और शैक्षिक संस्थान उपभोक्ता द्वारा बुकिंग या प्रवेश निरस्त कराने पर नियम एवं शर्तों का हवाला देकर रिफंड देने से इनकार कर देते हैं। हालांकि उपभोक्ता फोरम ने स्पष्ट कहा है कि एकपक्षीय नियम व शर्तों के आधार पर ग्राहक को रिफंड करने से मना नहीं किया जा सकता है। वहीं, ऐसे मामलों में यूजीसी और एआईसीटीई छात्रों के हितों की रक्षा के लिए पहले ही अपने दिशानिर्देश जारी कर चुके हैं।
उपभोक्ता कोर्ट ने कहा है कि उपभोक्ता एकपक्षीय नियम व शर्तों से बंधे नहीं है, जोकि उसे नहीं दिखाए गए हैं। हालांकि अदालत ने कहा कि यह भी जरूरी है कि उपभोक्ता हॉल संचालक को कितनी जल्दी बुकिंग रद्द करने की सूचना देता है व इस अवधि में संचालक को कोई दूसरी बुकिंग मिलती है या नहीं। यदि हॉल संचालक को समय रहते बुकिंग रद्द करने की सूचना दी जाती है तो उसे कागजी खानापूर्ति में हुए खर्च को काटकर पूरा रिफंड देना होगा।
वहीं, ग्राहक यदि बुकिंग काफी विलंब से रद्द करता है और हॉल संचालक को कोई दूसरी बुकिंग नहीं मिल पाती है, तो वह रिफंड करने के लिए बाध्य नहीं होगा। हाल ही में बंगलूरू की एक उपभोक्ता अदालत ने एक सराय मालिक को 60,000 रुपये के बुकिंग राशि में से उपभोक्ता को केवल 15,000 रुपये का ही भुगतान करने के आदेश दिए। अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता एचके सत्यनारायणन ने बुकिंग विलंब से रद्द किया और सराय मालिक को कोई दूसरी बुकिंग नहीं मिल सकी।
निपुण नागर बनाम सिम्बायोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल बिजनेस (आरपी नं. 1336, 2008, फैसला 2008) मामले में इंस्टीट्यूट ने तर्क दिया कि कोर्स शुरू होने के बाद छात्र ने प्रवेश वापस लिया। इसलिए संस्थान ने एक लाख रुपये रखकर मात्र 10,000 रुपए छात्र को लौटाए। शीर्ष अदालत (सुप्रीम कोर्ट) ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि छात्र का प्रवेश सामान्य श्रेणी में था और इसमें छात्र पर्याप्त हैं। अदालत ने कॉलेज को एक लाख रुपये मय छह फीसदी ब्याज लौटाने के आदेश दिए। स्त्रोत : पुष्पा गिरिमाजी, अमर उजाला, Story Update : Monday, November 14, 2011 12:26 AM
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